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सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग की वर्तमान स्थिति और उन पर कोविड-19 का प्रभाव

कोविड -19 ने हर क्षेत्र को प्रभावित किया है और इसमें सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग भी अछूता नही रहा है। देश मे MSMes की स्थिति कोरोना वायरस के पहले से भी सही नही चल रही थी ।आय एवम व्यय की समस्या लगातार देखने को मिल रही थी पर कोविड -19 ने इसको और अधिक प्रभावित किया है।

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों का वर्गीकरण :-

MSMEs का विनियमन ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम (Micro, Small and Medium Enterprises Development Act), 2006 के तहत किया जाता है।
MSMEs का निर्धारण उद्यम प्रारम्भ करने और मशीनरी में लगे आर्थिक निवेश के आधार पर किया जाता है । इससे इनका विश्वनीय आंकड़ा प्राप्त नही होता है।
फरवरी 2018 में केंद्र सरकार द्वारा MSME के श्रेणी निर्धारण हेतु मानक को ‘निवेश’ से बदलकर ‘वार्षिक कारोबार' करने का निर्णय लिया गया था, हालाँकि इस परिवर्तन को अभी प्रत्यक्ष रूप से लागू नहीं किया गया है।
सरकार द्वारा प्रस्तावित नई परिभाषा के अनुसार, 5 करोड़ रुपए से कम वार्षिक कारोबार वाले MSME को ‘सूक्ष्म’ उद्यम की श्रेणी में, 5-75 करोड़ रुपए के वार्षिक कारोबार वाले MSME को ‘लघु’ उद्यम की श्रेणी में और 75-250 करोड़ रुपए के वार्षिक कारोबार वाले MSME को ‘मध्यम’ उद्यम की श्रेणी में रखा गया है।

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों का भारतीय अर्थव्यस्था एव रोजगार में योगदान:-

  1. वित्तीय वर्ष 2018-19 के आंकड़ों के अनुसार भारत मे 6.34 करोड़ MSMEs है।
  2. इनमे से 51% ग्रामीण क्षेत्रों एवं 49% शहरी क्षेत्रों में है।
  3. ग्रामीण और शहरी दोनो को मिलाकर यह 11 करोड़ से ज्यादा लोगो को रोजगार उपलब्ध करवाता है।जिनमे से 55 प्रतिशत शहरी MSMEs से आता है।
  4. MSMEs उद्यमों में से 99.5 प्रतिशत उद्यम माइक्रो श्रेणी (सूक्ष्म) में आते है। माइक्रो श्रेणी से तातपर्य है जंहा पर जिनका संचालन एक व्यक्ति ( पुरुष अथवा महिला) द्वारा किया जाता है। शेष 0.5प्रतिशत लघु एवं मध्यम उद्योग शहरी क्षेत्र में है जो लगभग 5 करोड़ रोजगार उपलब्ध करवाता है।

समाज के विभिन्न वर्गों तक MSMEs की पहुंच :-
  • सूक्ष्म,लघु एवं मध्यम उद्यम का लगभग 66 प्रतिशत भाग निचले वर्ग से जुड़े लोगों द्वारा संचालित किए जाते है।
  • इनमे से 12.5 प्रतिशत अनुसूचित जाति के लोगों, 4.1 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के लोगो एव 49.7 प्रतिशत अन्य पिछड़े वर्ग द्वारा संचालित किए जाते है।
  • भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो देश के केवल 7 राज्यों में ही लगभग 50% MSMEs स्थित हैं।
  • इनमें उत्तर प्रदेश (14%), पश्चिम बंगाल (14%), तमिलनाडु (8%), महाराष्ट्र (8%), कर्नाटक (6%), बिहार (5%) और आंध्र प्रदेश (5%) हैं।
सभी श्रेणियों के MSMEs के कर्मचारियों में लगभग 80% पुरुष और मात्र 20% ही महिलाएँ हैं।

सूक्ष्म , लघु एवं मध्यम उद्योगों के सामने मुख्य चुनौतियां:-
  • भारत के अधिकतर MSMEs का पंजीकरण नही है और न ही कोई खाता मेन्टेन होता है। अधिकांश कर भी अदा नही करते और Gst भी नही। इन सबसे इनकी लागत में तो कमी आती है परंतु संकट के समय वास्तविक आंकड़े उपलब्ध न होने के कारण इनकी सहायता करना सरकार के लिए कठिन हो जाता है।
  • अधिकांश MSMEs का फण्ड इनफॉर्मल सोर्सेज से आता है। यही कारण है कि भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा इस क्षेत्र में तरलता बढ़ाने के प्रयास के परिणाम बहुत ही सीमित है।
  • MSMEs क्षेत्र में वित्त पोषण की कमी सबसे बड़ी चुनौती है। वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार औपचारिक लागत की कुल आवश्यकता का एक तिहाई लगभग 11 लाख करोड़ रुपये से कम ऋण उपलब्ध कराया गया है।
  • इसके अतिरिक्त भुगतान में विलंब होना इसकी सबसे बड़ी चुनौती हैं चाहे वह खरीददार हो या फिर GST रिफंड हो।

कोविड-19 का प्रभाव:-

कोविड-19 से पहले से MSMEs आय की गिरावट और अन्य समस्याओं से जूझ रहे थे लेकिन लोकडौन से इनकी स्थिति और भी खराब हो गयी है।

इन उद्योगों को लोन इनकी परिसंपत्ति पर मिलता है। लेकिन इस दौरान इनकी कीमत बहुत कम हो गयी है जिससे वांछनीय लोन उपलब्ध होना बहुत बड़ी समस्या है।

श्रमिको का पलायन इन उद्योगों के लिए सबसे बड़ी समस्याओ में से एक है।


समस्याओं से निपटने के लिए होने वाले प्रयास:-
  • सरकार द्वारा कर में कटौती
  • रिफंड प्रकिया में तेजी
  • प्रधान मंत्री किसान निधि, जन धन योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रो में तरलता बनाना
  • MSMEs उत्पादों की मांग में वृद्धि करना
  • यदि सरकार की तरफ से MSME ऋण के लिये एक ‘क्रेडिट गारंटी’ (Credit Guarantee) जारी की जाती है तो यह MSMEs के लिये काफी मददगार साबित हो सकती है।


स्रोत:- इंडियन एक्सप्रेस

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