The Eye & Sight (नेत्र तथा दृष्टि)
नेत्र एवं दृष्टि परीक्षा के लिए बहुत ही उपयोगी टॉपिक है। प्रतियोगी परीक्षाओं में इससे एक या दो प्रश्न आते ही रहते हैं। एसएससी, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग, संघ लोक सेवा आयोग, रेलवे इत्यादि परीक्षाओं को देखते हुए इससे संबंधित प्रमुख तथ्यो को विस्तार से यंहा पर पोस्ट किया जा रहा है।
नेत्र का आकार अंडाकार होता है। इसका व्यास लगभग 2.5 सेंटीमीटर होता है। नेत्र गोलक कुछ उपांगों के द्वारा सुरक्षित रहता है। जैसे :-
- पलकें (Lids)
- भौं (Eyebrow)
- श्लेष्मला (Conjunctiva)
- अक्षु उपकरण (Lacrimal apparatus)
आइए अब इनके बारे में जानते हैं :-
पलक (Lids) :- कॉर्निया की सुरक्षा के लिए दो पेशी युक्त पलकें होती है। एक तीसरी एवं पेशिविहीन पलक निमिलक छद मनुष्य में अवशेषी अंग के रूप में पाए जाते हैं।
पलको के दोनों कगारों पर बरौनियां तथा माइबोमियन ग्रंथियां पाई जाती हैं । इन ग्रंथियों से तेल सदृश पीले रंग का पदार्थ स्त्रावण होता है जो पलको के किनारों पर फैलता है।
नेत्र श्लेष्म ( conjunctiva) :- पलको की भीतरी सतह पर की उपचर्म पलको के बीच कॉर्निया पर फैली और इसी से समेकित होती है। यह पारदर्शक एवं झिल्लीनुमा होती है। इसे नेत्र श्लेष्म कहते हैं।
अश्रु या लैकरामिल ग्रंथियां :- ये प्रत्येक नेत्र के बाहरी कोण के तीन ग्रंथियां होती हैं। इनसे निकलने वाला जल सृदश तरल पलको एवं कॉर्निया तथा इसके ऊपर की कंजंक्टिवा को नम बनाये रखता है और इनकी सफाई करता है। हमे पता है कि जन्म के लगभग चार महीने बाद मानव शिशु में अश्रु ग्रंथियां सक्रिय होती है।
नेत्र की गति 6 पेशियों द्वारा सम्पन्न होती है। इनमे चार रेक्टस तथा दो तिरछी पेशिया होती है। जैसे :-
(1) दृढ़ पटल तथा रक्तकपटल (Sclera & Choroid)
मनुष्य का नेत्र लगभग एक खोखले गोले के समान होता है। इसकी सबसे बाहरी परत अपारदर्शी श्वेत तथा कठोर होती है। इसके द्वारा नेत्र के भीतरी भागो की सुरक्षा होती है।
दृढ़ पटल के भीतरी पृष्ठ से लगी एक परत या झिल्ली होती है जो काले रंग की होती है। इसे रक्तक पटल कहते हैं। काले रंग के कारण यह प्रकाश को अवशोषित करती है तथा नेत्र की भीतर परावर्तन को रोकती है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि केवल भर से आने वाली प्रकाश किरणे रेटिना पर पड़ती है।
(2) कॉर्निया (cornea):-
दृढ़ पटल कर सामने का कुछ भाग उभरा हुआ और पारदर्शी होता है। नेत्र में प्रकाश इसी भाग से गुजरकर पहुंचता है।
- कॉर्निया की आकृति असामान्य होने पर व्यक्ति को धुंधला दिखाई देता है। इसे दृष्टि वैषम्य कहते हैं।
(3) आईरिस- कॉर्निया के पीछे एक रंगीन एवं अपारदर्शी झिल्ली का पर्दा होता है। इसे आईरिस कहते हैं।
(4) पुतली अथवा नेत्र तारा (pupil):- आईरिस के बीच मे एक छिद्र होता है जिसको पुतली कहते है। यह गोल तथा काली दिखाई देती है। यह अंधकार में अपने आप बड़ी व अधिक प्रकाश में अपने आप छोटी हो जाती है। इस प्रकार नेत्र में सीमित मात्रा में ही प्रकाश जा पाता है।
(5) नेत्र लेंस:- यह आईरिस के ठीक भीतर की ओर, नेत्र गोलक की गुहा में, एक बड़ी सी रंगहीन पारदर्शक एवम crystalline लचीली होती है। यह biconvex होती है। जब इसकी आयु बढ़ जाती है तो यह चपटा एवम अधिक घना भूरा सा हो जाता है। सके बहुत अपारदर्शी हो जाने पर मनुष्य को दिखाई नही देता है जिसे मोतियाबिंदु कहते है।
(6) जलीव द्रव तथा कांच द्रव : कॉर्निया एवं नेत्र लेंस के बीच के स्थान में जल के समान पारदर्शी द्रव भरा होता है। इसका अपवर्तनांक 1336 होता ह। इसे जलीव द्रव कहते है। इसी प्रकार लेंस के पीछे दृश्य पटल तक एक स्थान गाढ़ा पारदर्शी एवं उच्च अपवर्तनांक के द्रव से भरा होता है
- सबलबाय (Glaucoma) :- नेत्र के गोलक के chombers में भरे इन द्रव्यों के दबाव से गोल्फ की दीवारें फैलती है और इसके स्तर अपने अपने स्थान पर सधे रहते है। मनुष्य में इसी दबाव के बढ़ जाने को सबलबाय (ग्लूकोमा) का रोग कहा जाता है।
(7) रेटिना :- यह नेत्र का भीतरी तांत्रिक स्तर है, यह अनेक परतों का बना होता है। जिनकी रचना तंतुओ, तंत्रिका कोशिकाएँ , शलाकाओं (rods) और शंकुवो से होती है।
दृष्टि शालाकाएँ (Rods) - ये मन्द प्रकाश में प्रकाश और अंधेरे का ज्ञान कराती हैं।
दृष्टि शंकु(cones):- ये तीव्र प्रकाश में वस्तुओं और विभिन्न रंगों का ज्ञान कराती है।
- उल्लू अथवा अनेक रात्रिचर स्तनियों के नेत्रों की रेटिना में शंकु नही होते । इनके केवल rods पाई जाती हैं
जब किसी वस्तु से निकली प्रकाश किरणे नेत्र में प्रवेश करती है तो कैमरे के नेगेटिव की भांति वस्तु की वास्तविक उल्टी तथा छोटी प्रतिमूर्ति नेत्र की रेटिना पर पडती है। रेटिना की संवेदी कोशिकाएँ संवेदित होती है और ऑप्टिक नर्व इस संवेदना को मस्तिष्क में पहुचाती है।
- रेटिना पर वस्तु की उल्टी प्रतिमूर्ति क्यों बनती है:- मुख्यतः कार्निया एवं एक्वस ह्यूमर, वस्तु से आई प्रकाश किरणों को अपनी अपनी फोकस दूरी के अनुसार लगभग दो तिहाई झुका देती है अथार्त इनका अपवर्तन कर देती है फिर जब पुतली से होते हुए ये किरणे लेंस में होकर गुजरती है तो लेंस इन्हें और अधिक झुका देता है। इसलिए रेटिना पर वास्तविक एवं उल्टी प्रतिमूर्ति पड़ती है।
दृष्टि ज्ञान की रसायनी :- दृष्टि संवेदना ग्रहण करने का काम नेत्रों की रेटिना की Rods एवं Cones कोशायें अपनी पिगमेंट्स की सहायता से करती है। रॉड्स के बाहरी खण्ड में दृष्टि पर्पिल नामक चमकीली पिग्मेंट होती है। इसका रासायनिक नाम रोडोप्सिन है। यह हीमोग्लोबिन की भांति एक प्रोटीन तथा एक पिग्मेंट पदार्थ के संयोजन से बनती है। प्रोटीन को ऑप्सिन तथा पिग्मेंट पदार्थ को रेटिनीन कहा जाता है।
- उजाले से एकाएक अंधेरे स्थान में जाने पर हमे कुछ समय के लिए कुछ दिखाई नही देता क्यों -? तीव्र प्रकाश में रोडोप्सिन समाप्त या निष्क्रिय हो जाता है। मन्द प्रकाश में रोडोप्सिन का ऑप्सिन और रेटिनीन में विखंडन हो जाता है। यही रासायनिक परिवर्तन दृष्टि संवेदना होती है। अंधेरे में रोड्स एंजाइम की सहायता से ऑप्सिन और रेटिनीन से वापस रोडोप्सिन का संश्लेषण कर लेती है। यही कारण है।फिर धीरे धीरे
- रोडोप्सिन का संश्लेषण होने के कारण दिखाई देने लगता है इसीलिए अंधेरे से उजाले में जाने पर चकाचौंध लगती है। इसका अन्य कारण पुतली का फैलना और छोटा होना भी है।
रतौंधी रोग का कारण :- रेटिनीन का प्रमुख घटक विटामिन A होता है। इसकी कमी पर रोडोप्सिन का संश्लेषण कम होने से मन्द प्रकाश में दिखाई देना बंद हो जाता है जिसे रतौंधी कहते है।
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