जलवायु परिवर्तन
वर्तमान में पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन और उससे होने वाले दुष्प्रभावों से गुजर रहा है। यह विश्व के सभी क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है। इसके चलते महासागरों का जल स्तर बढ़ रहा है, बर्फ पिघल रही है, पृथ्वी का तापमान में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है।इससे सभी देश को परेशानी का सामना करना पड़ रहा। है।इसके चलते प्राकतिक आपदाओं में वृद्धि दर्ज हो रही है मौसम परिवर्तन में निरन्तर अप्रत्याशित परिवर्तन इत्यादि देखने को मिल रहा है।
इससे देशों को सूखा, बाढ़ पानी की कमी इत्यादि समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इन सब को काबू करने के लिए देश की अर्थव्यवस्था का काफी खर्च होता है। मौसम परिवर्तन के चलते जीव-जंतु के रहन-सहन में भी परिवर्तन हो रहा है। इससे कई जंतु विलुप्त हो गए है या बहुत ही गंभीर संकट से गुजर रहे है। अनायास पलायन की समस्या भी सामने आ रही है।
इन्ही सभी समस्याओं के निपटान के लिए समय-समय पर विश्व के देश नीति बनाने का प्रयास करते है ताकि इन संकटो को दूर किया जा सके और भविष्य को खुशहाल बनाया जा सके।
पेरिस समझौते का इतिहास
30 नवम्बर से लेकर 11 दिसम्बर,2015 तक 195 देशों की सरकारें फ्रांस के पेरिस शहर में एकत्रित हुए और ग्लोबल ग्रीन हाउस उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से जलवायु परिवर्तन पर एक नए वैश्विक समझौते को सम्पन्न किया।
वर्तमान में पेरिस समझौते में कुल 197 देश है। सीरिया इस समझौते में शामिल होने वाला अंतिम देश है। रूस, तुर्की, ईरान जैसे देश अभी तक इस समझौते में हस्ताक्षर नही किये है।
क्या है पेरिस समझौता
इस समझौते का उद्देश्य वैश्विक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को काफी हद तक कम करना है ताकि इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस कम रखा जा सके।इसके साथ ही आगे चलकर तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
पेरिस समझौता और क्योटो प्रोटोकॉल में प्रमुख अन्तर
पेरिस समझौता और क्योटो प्रोटोकाल दोनो ही जलवायु परिवर्तन समझौते से संबंधित है । परंतु इनमे जो प्रावधान है उनमें अंतर है। आइए इस अंतर को समझते है-GSGS3
- क्योटो प्रोटोकाल में विकसित देशों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी उत्सर्जन कटौती लक्ष्य निर्धारित हुए है जबकि पेरिस समझौते में सभी देशों जैसे- विकसित,अल्पविकसित,विकासशील किसी के लिए बाध्यकारी लक्ष्य नही है बल्कि स्वेच्छा से ध्यान देने की बात पर बल दिया गया है।
- पेरिस समझौते के तहत सभी देश स्वयं अपने उत्सर्जन लक्ष्य निर्धरित कर सकते है और इसमें किसी भी प्रकार की दंडात्मक करवाई का प्रावधान नही है।
भारत और पेरिस समझौता :-
भारत ने इस समझौते में 2016 में औपचारिक रूप से समझौते पर हस्ताक्षर किए। भारत के INDC में सकल घरेलू उत्पाद उत्सर्जन की तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक 33-35 प्रतिशत तक कम करना शामिल है। इसके अतिरिक्त 2030 तक अतरिक्त वन और वृक्षावरण के माध्यम से 2.5- 3 बिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड के समतुल्य अतरिक्त कार्बन हास सृजित करना शामिल है
निष्कर्ष:-
यह एक गंभीर चुनौती है है जिसे सब देशों को मिलकर लड़ना चाहिए।इसलिए पेरिस समझौते का कुछ कमियां होने के बावजूद पालन करना चाहिए जिससे इस समझौते को ज्यादा प्रभावी बनाया जा सके।