प्रिय परीक्षार्थियों इस पोस्ट में निम्नलिखित विषय पर परीक्षा से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यो पर ध्यान रखते हुए अध्ययन करेंगे-
- साइमन कमीशन का गठन एवं उसका विरोध
- दिल्ली प्रस्ताव
- नेहरु रिपोर्ट
- जिन्ना की चौदह सूत्रीय मांगें
1919 के एक्ट में जो सुधार किये गये थे उनकी समीक्षा 10 वर्ष पश्चचात होनी थी। परंतु इसकी समीक्षा के लिए एक आयोग का गठन जिसे भारतीय विधिक आयोग नाम दिया गया 1927 में ही कर दिया गया। चूंंकि इस आयोग के अध्यक्ष जार्ज साइमन थे इसलिए इस आयोग को साइमन आयोग भी कहा जाने लगा। इस आयोग के अध्यक्ष जार्ज साइमन एवं सात सदस्य सभी श्वेत थे।
समय से पूर्व गठन होने का कारण:- 1927 में ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी की सरकार थी और वह विपक्षी पार्टी लेबर पार्टी से भयभीत थी तथा ब्रिटेन के सर्वाधिक बहुमूल्य उपनिवेश के भविष्य के प्रश्न को संभवत: सत्तरारुढ होने वाली लेबर पार्टी के लिए नहीं छोडना चाहती थी। कंजरवेटिव पार्टी के तत्कालीन सेक्रेटरी आफ स्टेट लार्ड बिरकनहेड का मानना था कि भारत के लोग संवैधानिक सुधारो हेतु एक सुनिश्चित योजना बनाने में सक्षम है इसलिए साइमन कमीशन की नियुक्ति कर दी।
साइमन कमीशन को वर्तमान सरकारी व्यवस्था,शिक्षा के प्रसार तथा प्रतिनिधि संस्थानों के अध्ययनोपरांत पर यह रिपोर्ट देनी थी की भारत में उत्तरदायी सरकार की स्थापना कहॉं तक उचित है तथा भारत इसके लिए कहां तक तैयार है
साइमन कमीशन की प्रमुख संस्तुतियॉं:-
- प्रांतीय क्षेत्रों में कानून तथा व्यवस्था सहित सभी क्षेत्रों में उत्तरदायी सरकार गठित की जाये
- केंद्रीय विधानमंडल का पुनर्गठन किया जाये । इसमें संघीय भावना हो तथा इसके सदस्य प्रांतीय विधानमंडलों द्वारा अप्रत्यक्ष तरीके से चुने जाए।
- केंद्र में उत्तरदायी सरकार का गठन न किया जाए क्यों इसके लिए अभी सही समय नहीं आया है
- पुनरीक्षण हेतु प्रत्येक 10 वर्ष पश्चात एक संवैधानिक आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था करने को समाप्त करने की अनुशंसा की गई।
- उड़ीसा एवं सिंध को अलग प्रदेश का दर्जा दिया जाए एवं बर्मा को भारत से अलग करने की अनुशंसा की गई।
- उच्च न्यायालय को भारत सरकार के नियंत्रण में लाने का सुझाव दिया गया यह रिपोर्ट 1935 में प्रकाशित की गई।
भारतीयो का विरोध :- चूंकि इस कमीशन में एक भी सदस्य भारतीय नहीं था ऐसे में भारतीयों के मन में यह संदेश गया कि अंग्रेज भारतीयों को स्वाशासन के योग्य नहीं समझते है। भारतीयों का मत था कि भारत का संविधान भारतीयों द्वारा ही निर्मित किया जाना चाहिए न की ब्रिटिश द्वारा।
साइमन कमीशन 3 फरवरी 1928 को बंबई पहुंचा। इसका हर जगह विरोध किया गया। ''साइमन गो बैक'' के नारे लगाऐ गये। विरोध प्रर्दशन के दौरान लाहौर में लाठीचार्च से लाला लाजपत राय बुरी तरह घायल हो गये और नवंबर, 1928 में उनकी मौत हो गई।
'' मेरे ऊपर जिस लाठी से प्रहार किए गए हैं, वही एक दिन ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी- लाला लाजपत राय''
कांग्रेस एवं अन्य दलों की प्रतिक्रिया :- कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन की अध्यक्षता 1927 में एम. ए. अंसारी द्वारा कि गयी। इसमें प्रत्येक स्तर एवंं प्रत्येक स्वरुप पर साइमन कमीशन के बहिष्कार का निर्णय लिया गया।
किसान मजदूर पार्टी, लिबरल फेडरेशन, मुस्लिम लीग , हिंदू महासभा ने कांग्रेस के साथ मिलकर कमीशन का विरोध करने की नीति बनायी
पंजाब की यूनियनिस्ट एवं दक्षिण भारत की जस्टिस पार्टी ने कमीशन का विरोध नहीं करने का निर्णय लिया
दिल्ली प्रस्ताव- 1927 में मुस्लिम लीग तथा अन्य मुस्लिम प्रमुख नेताओं ने कई मांगे रखी जिसे कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन में स्वीकार कर लिया गया और इसे ही ''दिल्ली प्रस्ताव'' की संज्ञा दी गई।
- पृथक निर्वाचन प्रणाली को समाप्त कर संयुक्त निर्वाचन प्रणाली की व्यवस्था की जाए एवं कुछ सीटे मुसलमानों के लिए आरक्षित की जाए।
- केंद्रीय विधानमंडल में मुसलमानों के लिए एक तिहाई सीटे आरक्षित की जाएं
- पंजाब और बंगाल के विधानमंडलों के जनसंख्या के अनुपात में मुस्लिम के लिए स्थान आरक्षित की जाए (हिंदू महासभा ने इसका विरोध किया)
- सिंध, बलूचिस्तान एवं उत्तर-पश्चमी सीमांत प्रांत नामक तीन मुस्लिम बहुल प्रांतो का गठन किया जाए। (हिंदू महासभा ने इसका विरोध किया)
इस समस्या का समाधान करने की कोशिश नेहरु रिपोर्ट में की गई परंतु पहले जान लेते है कि नेहरु रिपोर्ट का गठन कब और क्यों हुआ-
1928 में कांग्रेस और जिन्ना गुट के बीच उत्पन्न हुए सांप्रदायिक संकट से पहले इन सबने साथ मे मिलकर डोमेनियन स्टेट का संविधान बनाने का प्रयास किया गया।
1928 में उस समय भारत के भारत सचिव
लार्ड बिरकनहेड ने भारतीयों को ऐसे संविधान बनाने की चुनौती दी जो सभी गुटो एवं दलो को मान्य हो इस चुनौती को स्वीकार कर लिया गया तथा मोतीलाल नेहरु की अध्यक्षता में एक उप समिति का गठन किया गया जिसमें तेज बहादुर सप्रू, सुभाष चंद्र बोस, अली इमाम, मंगल सिंह, शोएब कुरैशी आदि सदस्य थे। अगस्त 1928 मे उप-समिति ने रिपोर्ट पेश की जिसे नेहरु रिपोर्ट कहा गया-
नेहरु रिपोर्ट में डोमेनियन स्टेट की मांग की गई। लखनऊ में डा. अंसारी की अध्यक्षता में पुन: सर्वदलीय सम्मेलन हुआ जिसमें नेहरू रिपोर्ट को स्वीकार किया गया। मुहम्मद अली जिन्ना इससे असहमत थे।
नेहरु रिपोर्ट की प्रमुख अनुशंसाए एवं फैक्ट- भारतीय संविधान का मसविदा तैयार करने की दिशा में भारतीयों का प्रथम प्रयास
- पूर्ण औपिनेवेशिक स्वराज्य का दर्जा दिया जाए
- सार्वजनिक निर्वाचन प्रणाली को समाप्त कर दिया जाए एवं संयुक्त निवार्चन पद्धति की व्यवस्था की जाए।
- केंद्र एवं राज्यों में जहां मुसलमान अल्पसंख्यक है वहां पर कुछ स्थान आरक्षित किये जाए पर यह व्यवस्था मुस्लिम बाहुल्य प्रांतो मे न लागू की जाये
- भाषायी आधार पर प्रांतो का गठन
- उन्नीस मौलिक अधिकारों की मांग जिनमें महिलाओं का समान अधिकार , संघ बनाने की स्वतंत्रता एवं वयस्क मताधिकार जैसी मांगे थी।
- केंद्र एवं राज्यों में उत्तरदायी सरकार की स्थापना की जाए
- केंद्र में भारतीय संसद या व्यवस्थापिकाा के दो सदन हो , पहला निम्न सदन (हाउस आफ रिप्रेजेंटेटिव ) जिनकी संख्या 500 हो एवं सदस्यों का चुनाव वयस्क मताधिकार द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव पद्धति से हो। निम्न सदन का कार्यकाल 5 वर्ष हो
- उच्च सदन (सीनेट) की संख्या 200 हो इसके सदस्यों का निर्वाचन परोक्ष रुप से प्रांतीय व्यवस्थापिकाओं क्षरा किया जाये। उच्च सदन का कार्यकाल 7 वर्ष हो
- केंद्र सरकार का प्रमुख गर्वनर जनरल हो जिसकी नियुक्ति ब्रिटिश सरकार द्वारा की जाएगी
- गर्वनर जनरल केंद्रीय कार्यकारणी परिषद की सलाह पर कार्य करेगा , जो केंद्रीय व्यवस्थापिकााके प्रति उत्तरदायी होगा।
- प्रांतीय व्यवस्थापिकाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा। इनका प्रमुख गवर्नर होगा, जो प्रांतीय कार्यकारिणी परिषद की सलाह पर कार्य करेगा
- मुसलमानों की धार्मिक एवं सांस्कृतिक हितो का पुर्ण संरक्षण।
- केंद्र और प्रांतो में संंघीय आधार पर शक्तियों का विभाजन परंतु अवशिष्ट शक्तियों केंद्र को दी जाए
- धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना
- कार्यपालिका को विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी बनाया जा
- सिंध को बंबई से अलग कर नया प्रांत बनाया जाए
- भारत में प्रतिरक्षा समिति उच्चतम न्यायालय, लोक सेवा आयोग की स्थापना की जाए इत्यादि
चूंकि कुछ बिंदुओ पर (दिल्ली प्रस्ताव मे वर्णित) लीग व हिंदू महासभा के बीच असहमति थी। रिपोर्ट के प्रतिनिधि यह नहीं चाहते थे कि ये मौका सिर्फ सांप्रदायिकता के अधार पर गवा दिया जाए । इसलिए इसमें कुछ संशोधन करके बिंदु जोडे गए
- संयुक्त निर्वाचन व्यवस्था को अपनाया जाएगा किंतु मुसलमानों के लिए सीटें उन्हीं स्थानों पर आरक्षित की जायेंगी , जहां वे अल्पमत में हो
- एक सर्वसम्मत राजनीतिक प्रस्ताव तैयार किया जाएगा।
- डोमेनियन स्टेट्स का दर्जा मिलने के बाद ही सिंध को बंबई से अलग कर नया प्रांत बनाया जाएगा
जिन्ना द्वारा जताई गयी आपत्तियां एवं चौदह सूत्री मांग: 1928 में नेहरु रिपोर्ट की समीक्षा के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई गई जिसमें जिन्ना ने तीन संशोधन प्रस्तुत किये जो कि मतदान होने पर इन्हे ठुकरा दिया गया । इसके पश्चात मुस्लिम लीग सर्वदलीय सम्मेलन से अलग हो गई और मार्च 1929 में जिन्ना ने अपनी चौदह सूत्री मांगे पेश की । इसमें जिन्ना ने अपनी आपत्तियों को भी शामिल किया
- भारत का संविधान संघात्मक (federal) हो और अवशिष्ट अधिकार प्रान्तों के अधीन रखा जाए.
- सभी प्रान्तों में सामान रूप से स्वायत्त शासन (autonomous government) की स्थापना की जाए.
- सभी विधानमंडलों और निर्वाचित निकायों का फिर से गठन किया जाए और अल्पसंख्यक जातियों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिया जाए. प्रांतीय विधानमंडलों में बहुसंख्यक लोगों का बहुमत रहे और उसे न तो घटाया जाए और न बराबरी पर लाया जाए.
- केन्द्रीय विधानमंडल में मुसलमानों का एक-तिहाई प्रतिनिधित्व रहे.
- सभी सम्प्रदायों का प्रतिनिधित्व पृथक निर्वाचन-पद्धति (separate electorate) के आधार पर हो और यदि कोई सम्प्रदाय चाहे तो वह संयुक्त निर्वाचन-पद्धति को अपना सकता है.
- पंजाब, बंगाल और पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में क्षेत्रीय पुनर्गठन इस ढंग से किया जाए कि उसके कारण मुसलमान इन प्रान्तों में अल्पसंख्यक न हो जाएँ.
- सभी धार्मिक सम्प्रदायों को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी जाए और पूजा, आचरण, प्रचार-प्रसार पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जाए.
- किसी विधानमंडल में ऐसे विधेयक न पेश किये जाएँ जिसका सम्बन्ध किसी सम्प्रदाय विशेष के लिए हानिकारक हो. यदि उक्त सम्प्रदाय के 3/4 सदस्य विधेयक के सम्बन्ध में अपनी सहमति प्रकट न करें तो उसे पेश नहीं किया जाए.
- सिंध को बम्बई प्रांत से अलग कर स्वतंत्र प्रांत का दर्जा दिया जाए.
- उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत और बलूचिस्तान में अन्य प्रान्तों की तरह सांविधानिक सुधार आरम्भ होना चाहिए.
- अन्य भारतीयों की तरह मुसलमानों को कुशलता के आधार पर सरकारी संस्थाओं और स्वायत्तशासी निकायों में नौकरी करने का उचित अवसर प्राप्त हो.
- भावी संविधान में मुसलमानों के धर्म, संस्कृति, भाषा और शिक्षा के विकास की समुचित व्यवस्था की जाए.
- केंद्रीय और प्रांतीय मंत्रिमंडलों में मुसलमानों को 1/3 प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए.
- केन्द्रीय सभा तभी संविधान में संशोधन कर सकती है जब ऐसा करने उसे भारतीय संघ के घटक-राज्यों से स्वीकृति मिल चुकी हो.
Forgot password?
Close message
Subscribe to this blog post's comments through...
Subscribe via email
SubscribeComments
Post a new comment
Comment as a Guest, or login:
Comments by IntenseDebate
Reply as a Guest, or login: