चर्चा में क्यों:- अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री ने कहा है कि गाजियाबाद में नर्सो से बुरा बर्ताव करने वाले तबलीगी जमात से सबंधित 6 व्यक्तियों को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत चार्ज किया जाएगा।
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की ऐतिहासिक पृष्ठिभूमि- इस क़ानून की पृष्ठिभूमि की बात करें तो 1980 में दोबारा सत्ता में आई इंदिरा गांधी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून को संसद से पास किया गया था । बाद में 27 दिसंबर 1980 को तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी की मंज़ूरी मिलने के इसे राष्ट्रीय सुरक्षा कानून 1980 के रूप में जाना जाने लगा।
इसे क्या शक्ति प्राप्त है-
यह कानून ऐसे व्यक्तियों को एहतियातन (preventive detention) महीनों तक हिरासत में रखने के अधिकार देता है
(1)जिससे प्रशासन को राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून व्यवस्था का खतरा होता है । कानून का इस्तेमाल जिलाधिकारी, पुलिस आयुक्त, राज्य सरकार अपने सीमित दायरे में भी कर सकती है.
(2) भारत की रक्षा, विदेशी शक्तियों के साथ भारत के संबंध, या इंडी की सुरक्षा के लिए किसी भी तरह से पूर्वाग्रहपूर्ण कार्य।
(3)भारत में किसी भी विदेशी की निरंतर उपस्थिति को विनियमित करना या भारत से उसके निष्कासन की व्यवस्था करना।
यह कानून केंद्र और राज्य सरकार को संदिग्ध व्यक्ति को हिरासत में लेने की शक्ति देता है। सीसीपी, 1973 के तहत जिस व्यक्ति के खिलाफ आदेश जारी किया जाता है, उसकी गिरफ्तारी भारत में कहीं भी हो सकती है।।
संविधान के अनुसार
(1) संविधान का अनुच्छेद 22 (3) (बी) राज्य सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के कारणों के लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर निवारक निरोध और प्रतिबंध की अनुमति देता है
(2) अनुच्छेद 22 (4) कहता है कि निवारक निरोध के लिए प्रदान करने वाला कोई भी कानून किसी व्यक्ति को तीन महीने से अधिक समय तक हिरासत में रखने का अधिकार नहीं देगा जब तक कि: एक सलाहकार बोर्ड विस्तारित हिरासत के लिए पर्याप्त कारण की रिपोर्ट नहीं करता है
इस कानून के तहत किसी व्यक्ति को पहले तीन महीने के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है। उसके बाद ज़रूरत के मुताबिक़ तीन-तीन महीने हेतु गिरफ्तारी की अवधि बढ़ाई जा सकती है। साथ ही यदि किसी अधिकारी ने ये गिरफ्तारी की हो तो उसे राज्य सरकार को बताना होता है कि उसने किस आधार पर ये गिरफ्तारी की है। अगर रिपोर्ट को राज्य सरकार मजूरी दे देती है तो इसे सात दिन के भीतर केंद्र सरकार को भेजना होता है। इस रिपोर्ट में इस बात का जिक्र करना ज़रूरी होता है कि किस आधार पर यह आदेश जारी किया गया है और राज्य सरकार का इस पर क्या विचार है और यह आदेश जरूरी क्यों है।
राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को बिना कारण बताए 10 दिन तक रखा जा सकता है।
अपील:- सबंधित व्यक्ति डायरेक्ट हाइकोर्ट में अपील नही कर सकता वह हाई कोर्ट के सलाहकार बोर्ड के सामने अपील कर सकता है। ट्रायल के दौरान वकील की भी अनुमति नही है।
यह कठोर क्यों है और अन्य हिरासत में लिए गए चार्जेस से अलग क्यों है-
(1) आमतौर पर यदि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो उसे उसका कारण बताना जरूरी होता (section 50 of CrPC) है परंतु रासुका में ऐसा नही है।
(2)सेक्शन 56 और सेक्शन 76 के अनुसार गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को 24 घण्टे के भीतर कोर्ट के सामने पेश करना होता है परन्तु यह रासुका में नही अप्लाई होता।
(3)अनुछेद 22(1) से व्यक्ति को विधिक सलाह लेने का अधिकार प्राप्त है परन्तु रासुका के तहत लिए गए व्यक्ति को यह अधिकार प्राप्त नही।।
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